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Tuesday, August 11, 2020

ये राखी बंधन है ऐसा... मिनीमाता और बिसाहूदास महंत

1 अगस्त 1972 का वह निष्ठुर दिन। तात्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी का संदेश मिला, तात्कालीन सांसद मिनीमाता को तत्काल दिल्ली पहुंचने का। त्वरित दिल्ली पहुंचने का कोई साधन सुलभ नहीं था। मिनीमाता अपनी समस्या बिसाहूदास महंत से शेयर कीं। महंत जी भोपाल से दिल्ली जा रहे थे, प्लेन की पूरी सीट फूल थी । महंत जी ने अपनी टिकट उन्हें दे दी। मिनीमाता दिल्ली रवाना हो गयीं । पालम हवाई अड्डे के पास विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया । तब किसे पता था माताजी हम सब को छोडकर  अनंत यात्रा  के लिये प्रस्थित हो रही थीं। यदि बिसाहूदास महंत उस विमान में गये होते,तो पूरा महंत परिवार बिखर गया होता । तात्कालीन राजनीति का एक महत्वपूर्ण  इतिहास बिखर गया होता । शायद  माता जी ने अपने अनुज को बचा लिया था ,यह कहते हुये कि भाई पहले मेरी बारी है। वात्सल्यमयी मिनीमाता का आविर्भाव 15 मार्च 1913 को हुआ था और अजातशत्रु जननेता बिसाहूदास महंत का आविर्भाव 1 अप्रैल 1924 को। 

उल्लेखनीय है कि मिनीमाता बिसाहूदास महंत को राखी बांधती थीं और स्वर्गीय महंत जी के भोपाल निवास पर आती रहती थीं । महंत जी अपनी अग्रजा को बिना भोजन किये अपने  घर से जाने नहीं  देते थे। ममता की मूर्ति मिनीमाता छत्तीसगढ की पहली महिला सांसद हुई हैं और लोकसभा के लिये 1952 ,1957,1962 ,1967 एवं  1971 में निर्वाचित हुईं ,वहीं उनके राखी भाई बिसाहूदास महंत 1952,1957,1962 ,1967 ,1972एवं 1977 में विधान सभा के लिये चुने गये । बहन अपराजेय सांसद रहीं, तो भाई अपराजेय विधायक। बहन विभिन्न क्षेत्रों से लोकसभा चुनाव लडीं ,तो भाई  भी विभिन्न क्षेत्रों से विधान सभा का चुनाव लड़े। बहन अपने अंतिम समय में सांसद रहीं ,तो भाई अपने अंतिम समय में विधायक। वात्सल्यमयी मिनीमाता के खाते मे  सामाजिक कलंक अस्पृश्यता निवारण की दिशा में  कालजयी उपक्रम करने का श्रेय जाता है।

उल्लेखनीय है कि अस्पृश्यता (अपराध ) अधिनियम पारित कराने में  माताजी की अप्रतिम भूमिका रही है।  अस्पृश्यता ( अपराध) अधिनियम 1955 नाम 18 -11- 1976  से  सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955  हो गया है ।बाल विवाह निषेध , दहेज प्रथा समाप्ति, स्त्री शिक्षा आदि के क्षेत्र में  भी माताजी सतत  प्रयासरत रहीं।ये छत्तीसगढ सांस्कृतिक मंडल का अध्यक्ष रहीं ,वहीं छत्तीसगढ मजदूर कल्याण संगठन भिलाई के भी संस्थापक अध्यक्ष रहीं।

सांसद के रूप में इनका दिल्ली निवास  सदा आगंतुकों का रैन बसेरा रहा ।ये ठंड के दिनों में अपना कंबल तक  ओढा देती थीं, लेकिन किसी आत्मीय जन को ठिठुरते नहीं देख सकती थीं।  इनके  वात्सल्य के कृपापात्र  ख्यातिलब्ध पत्रकार और साहित्यकार श्रीकांत वर्मा भी रहे। वर्मा जी माताजी की चर्चा करते हुये भावविभोर हो जाते थे । श्रीकांत वर्मा ने अपना चौथा कविता संग्रह जलसाघर (राजकमल प्रकाशन,1973 ) आदरेया मिनीमाता को समर्पित किया है। स्मृतिशेष मिनीमाता की 48 वीं पुण्यतिथि  के अवसर पर हम उनकी स्मृतियों को प्रणाम करते हैं।

देवधर महंत

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