उल्लेखनीय है कि मिनीमाता बिसाहूदास महंत को राखी बांधती थीं और स्वर्गीय महंत जी के भोपाल निवास पर आती रहती थीं । महंत जी अपनी अग्रजा को बिना भोजन किये अपने घर से जाने नहीं देते थे। ममता की मूर्ति मिनीमाता छत्तीसगढ की पहली महिला सांसद हुई हैं और लोकसभा के लिये 1952 ,1957,1962 ,1967 एवं 1971 में निर्वाचित हुईं ,वहीं उनके राखी भाई बिसाहूदास महंत 1952,1957,1962 ,1967 ,1972एवं 1977 में विधान सभा के लिये चुने गये । बहन अपराजेय सांसद रहीं, तो भाई अपराजेय विधायक। बहन विभिन्न क्षेत्रों से लोकसभा चुनाव लडीं ,तो भाई भी विभिन्न क्षेत्रों से विधान सभा का चुनाव लड़े। बहन अपने अंतिम समय में सांसद रहीं ,तो भाई अपने अंतिम समय में विधायक। वात्सल्यमयी मिनीमाता के खाते मे सामाजिक कलंक अस्पृश्यता निवारण की दिशा में कालजयी उपक्रम करने का श्रेय जाता है।
उल्लेखनीय है कि अस्पृश्यता (अपराध ) अधिनियम पारित कराने में माताजी की अप्रतिम भूमिका रही है। अस्पृश्यता ( अपराध) अधिनियम 1955 नाम 18 -11- 1976 से सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 हो गया है ।बाल विवाह निषेध , दहेज प्रथा समाप्ति, स्त्री शिक्षा आदि के क्षेत्र में भी माताजी सतत प्रयासरत रहीं।ये छत्तीसगढ सांस्कृतिक मंडल का अध्यक्ष रहीं ,वहीं छत्तीसगढ मजदूर कल्याण संगठन भिलाई के भी संस्थापक अध्यक्ष रहीं।
सांसद के रूप में इनका दिल्ली निवास सदा आगंतुकों का रैन बसेरा रहा ।ये ठंड के दिनों में अपना कंबल तक ओढा देती थीं, लेकिन किसी आत्मीय जन को ठिठुरते नहीं देख सकती थीं। इनके वात्सल्य के कृपापात्र ख्यातिलब्ध पत्रकार और साहित्यकार श्रीकांत वर्मा भी रहे। वर्मा जी माताजी की चर्चा करते हुये भावविभोर हो जाते थे । श्रीकांत वर्मा ने अपना चौथा कविता संग्रह जलसाघर (राजकमल प्रकाशन,1973 ) आदरेया मिनीमाता को समर्पित किया है। स्मृतिशेष मिनीमाता की 48 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर हम उनकी स्मृतियों को प्रणाम करते हैं।
देवधर महंत